क्या आत्मशुद्धि कर पाएंगे केजरीवाल?
अरविंद केजरीवाल इन दिनों पंजाब के एक गांव में विपश्यना तप कर रहे हैं। उनका यह…
अरविंद केजरीवाल इन दिनों पंजाब के एक गांव में विपश्यना तप कर रहे हैं। उनका यह तप 15 मार्च तक चलेगा। चलिए इसे थोड़ा समझ लें। विपश्यना एक प्राचीन ध्यान विधि है जिसका अर्थ है आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि। गौतम बुद्ध ने इसे 2500 वर्ष पूर्व खोज निकाला था। वैसे इसका इतिहास बुद्ध-काल से भी अधिक पुराना है। ‘आप’ पार्टी के महानायक अब इस बात का खुलासा या तो स्वयं ही कर सकते हैं या फिर विपश्यना पद्धति के विशेषज्ञ। वैसे यह भी तय है कि प्रतिपक्ष के लोग भी इस विषय पर अपना-अपना नज़रिया देर-सवेर उगलेंगे।
पंजाब के जिला होशियारपुर का यह गांव आनंदगढ़ केजरीवाल के लिए नया नहीं है। यह पहले भी इस गांव में स्थित विपश्यना केंद्र में आ चुके हैं, मगर पहली बार कितना आत्म निरीक्षण या कितनी आत्मशुद्धि हो पाई थी, इसका खुलासा भी स्वयं केजरीवाल ही कर सकते हैं। इस बार वह पूरे परिवार के साथ आए हैं। जब वह इस बार विपश्यना केंद्र पहुंचे तो उनके साथ लगभग 30-35 गाड़ियों का काफिला भी था। यानी आत्मशुद्धि की इस कवायद के लिए भी उन्हें कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत महसूस हुई। वैसे यह तामझाम स्वाभाविक भी था। पंजाब में इन दिनों उनकी पार्टी की सरकार है और प्रदेश के वर्तमान तनाव भरे माहौल में इनकी सुरक्षा के बारे में राज्य सरकार द्वारा कोई जोखिम नहीं उठाया जा सकता। विपश्यना का एक अर्थ यह भी है कि जो वस्तु सचमुच जैसी भी है उसे उसी रूप में जान लेना। वैसे यह साधना पद्धति अंध-श्रद्धा पर आधारित कर्मकाण्ड नहीं है। निर्धारित परिभाषाओं के अनुसार यह दुख-मुक्ति की साधना है, मन को निर्मल करने की एक ऐसी विधि जिससे साधक जीवन के उतार-चढ़ावों का सामना संतुलित रूप में व शांतिपूर्व कर सकते हैं।
विपश्यना राग-द्वेष व अज्ञान को दूर करती है। केजरीवाल एक प्रबुद्ध इंसान हैं। एक राजनैतिक पार्टी के संस्थापक हैं। दिल्ली जैसे संवेदनशील क्षेत्र के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। विधानसभा-चुनावों में मिली पराजय के कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने एक प्रमुख केंद्रीय मंत्री को एक सार्वजनिक बयान में ‘देश का सबसे बड़ा गुण्डा’ कह डाला था। अब उन बातों-बयानों का आत्मनिरीक्षण करेंगे तो स्वयं उन्हें एहसास हो जाना चाहिए कि वह उन दिनों में कितने ‘ज़हरीले’ बयान दिए जा रहे थे। तब उन्हें शायद इस बात का आभास तक भी नहीं था कि इस देश का आम आदमी भी ज़हर-बुझे बयान पसंद नहीं करता।
चलिए कुछ क्षण ‘विपश्यना’ में लौटते हैं। विपश्यना के शिविर ऐसे व्यक्ति के लिए खुले हैं, जो ईमानदारी के साथ इस विधि को सीखना चाहे। इसमें कुल, जाति, धर्म अथवा राष्ट्रीयता आड़े नहीं आती। हिन्दू, जैन, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई, यहूदी तथा अन्य सम्प्रदाय वालों ने बड़ी सफलतापूर्वक विपश्यना का अभ्यास किया है। चूंकि रोग सार्वजनीन है, अत: इलाज भी सार्वजनीन होगा। आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की साधना आसान नहीं है। शिविरार्थियों को गंभीर अभ्यास करना पड़ता है।
अपने प्रयत्नों से स्वयं अनुभव द्वारा साधक अपनी प्रज्ञा जगाता है, कोई अन्य व्यक्ति उसके लिए यह काम नहीं कर सकता। शिविर की अनुशासन-संहिता साधना का ही अंग है।
मन की गहराइयों में उतरकर पुराने संस्कारों का निर्मूलन करने की यह विपश्यना साधना सीखने के लिए 10 दिन की अवधि वास्तव में बहुत कम है। साधना में एकांत अभ्यास की निरंतरता बनाए रखना आवश्यक माना जाता है। इसी बात को ध्यान में रख कर यह नियमावली और समय-सारिणी बनाई गई है।
शील-बर्ताव इस साधना की नींव है। शील के आधार पर ही समाधि मन की एकाग्रता प्रबंध होता है; एवं प्रज्ञा के अभ्यास द्वारा चित्त-शुद्धि होती है, अंतर्ज्ञान होता है।
सभी शिविरार्थियों को शिविर के दौरान पांच नियमों का पालन करना अनिवार्य है:
1. जीव-हत्या से विरत रहेंगे।
2. चोरी से विरत रहेंगे।
3. मैथुन से विरक्त रहेंगेे।
4. असत्य-भाषण से सख्त परहेज़ होगा।
5. नशे के सेवन से दूरी रखनी होगी।
शिविर के दरम्यान संगीत या गाना सुनना, कोई वाद्य बजाना मना है। हिदायत दी जाती है कि शिविर में लिखना-पढ़ना मना होने के कारण साथ कोई लिखने-पढ़ने का साहित्य न लाएं। शिविर के दौरान धार्मिक एवं विपश्यना संबंधी पुस्तकें पढ़ना भी वर्जित है। ध्यान रहे विपश्यना साधना पूर्णतया प्रायोगिक विधि है। लेखन-पठन से इसमें विघ्न ही होता है। अत: नोटस् भी नहीं लिखें।
विशिष्ट अनुमति के बिना विपश्यना केंद्र में कैमरा व टेप-रिकार्ड भी वर्जित होता है। इनका उपयोग सर्वथा वर्जित है। विपश्यना जैसी अनमोल साधना की शिक्षा पूर्णतया नि:शुल्क ही दी जाती है। विपश्यना की विशुद्ध परंपरा के अनुसार शिविरों का खर्च इस साधना से लाभान्वित साधकों के कृतज्ञता भरे ऐच्छिक दान से ही चलता है।
यदि केजरीवाल पूरे समर्पण भाव से ‘विपश्यना’ तप करेंगे तो आत्मनिरीक्षण के लिए उन्हें वे दिन भी याद आएंगे जब अपने प्रथम गुरु के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में उन्होंने अनेक संकल्प लिए थे। उनमें एक यह भी था कि वे सक्रिय राजनीति में प्रवेश से परहेज़ करेंगे और आजन्म भ्रष्टाचार के विरुद्ध जूझते रहेंगे।
मगर बाद में जो भी हुआ वह हाल ही के इतिहास में दर्ज है। राजनैतिक पार्टी भी बनी, सरकार भी बनी, चंदे भी एकत्र हुए। भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे और अब भी जब वह ‘विपश्यना’ तप में लीन हैं, वह अभी भी ज़मानत पर ही हंै।
उम्मीद करनी चाहिए कि इस आत्मशुद्धि के बाद वह ज़हरीले बयानों से परहेज करेंगे। जहां-जहां गलतियां हुई हैं उन्हें खुले मन से स्वीकार करेंगे और भाषा व शब्दावली के दुरुपयोग से भी कठोरतापूर्वक परहेज़ रखेंगे। यदि वह बाबू गांधी की तरह ‘सत्य के साथ कुछ प्रयोग’ कर पाएं तो भला भी उन्हीं का होगा।