उपाध्याय का सपना क्या ‘शाह’ पूरा करेंगे?
भारतीय जनता पार्टी की आधुनिक राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले गृहमन्त्री…
भारतीय जनता पार्टी की आधुनिक राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले गृहमन्त्री श्री अमित शाह जिस तरह दक्षिण विजय अभियान चला रहे हैं उसे देख कर कहा जा सकता है कि वह अपनी पार्टी के संस्थापक दार्शनिक स्व. दीन दयाल उपाध्याय के सपने को पूरा करना चाहते हैं जिसके लिए वह व्यापाक मुिहम चला रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (पूर्व में जनसंघ) ने जब 1967 में स्व. दीनदयाल उपाध्याय को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था तो उन्होंने पार्टी का अधिवेशन केरल के कालीकट में शहर मंे करके यह पैगाम देने की कोशिश की थी कि उनकी पार्टी केवल उत्तर भारत तक सीमित होकर नहीं रह सकती। स्व. उपाध्याय की सोच थी कि पार्टी की आर्थिक नीतियों का खुलासा करके इसके पैर दक्षिण भारत की तरफ भी बढ़ाये जा सकते हैं। उनका एकात्म मानवतावाद और अन्त्योदय का सिद्धान्त भारत के हर प्रदेश वासी को जनसंघ या भाजपा से जोड़ सकता है। इसके साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में उत्तर को दक्षिण से जोड़ने की अदम्य ताकत है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जरिये भारत की उस आत्मा को जागृत किया जा सकता है जो प्रत्येक भारतीय में भारत के प्रति अटूट आस्था का भाव जगाती है। यह प्रयोग सर्व प्रथम नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने किया था। आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं ‘शंकराचार्य पीठें’ स्थापित करके भारतीयों को जोड़े रखने के पक्के उपाय किये थे। बेशक यह हिन्दू राष्ट्रवाद का ही अखिल भारतीय स्वरूप था मगर इसमें भारत की मूल आत्मा समाहित थी ।
हिन्दू राष्ट्रवाद केवल किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं है बल्कि वह समस्त भारतीयों को अपनी मूल संस्कृति से जोड़े रखने का आयाम है। इसे साम्प्रदायिक स्वरूप में पेश करने की जो लोग कोशिश करते हैं वे ‘आम से गुठली’ को अलग करने का प्रयास करते हैं। स्व. उपाध्याय की परिकल्पना थी कि समूचा भारत अपने वंचित लोगों की सेवा में इस प्रकार तत्पर रहे जिस प्रकार सन्त रविदास चाहते थे।
जहं–जहं जाऊं तहां तेरी सेवा
तुम सा ठाकुर और न देवा
स्व. उपाध्याय अपने फलसफे में दरिद्र नारायण की सेवा को ईश्वर सेवा ही मानते थे। यदि गौर से देखा जाये तो प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले 11 साल के शासन में इसी तरफ निर्णायक कदम सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर उठाये हैं जिसकी वजह से उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। हालांकि उनके विरोधियों से यह सत्य स्वीकार नहीं हो पा रहा है मगर हकीकत यह है कि जमीन पर श्री मोदी की लोकप्रियता को कोई चुनौती देने वाला दूसरा नेता नहीं है। अब यह लोकप्रियता क्षेत्रीय स्तर पर भी नजर आने लगी है इसकी एकमात्र वजह मोदी सरकार की गरीब समर्थक योजनाएं और स्कीमंे ही हैं। उनके विरोधी तर्क दे रहे हैं कि जब मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन उपलब्ध करा रही है तो गरीबी पिछले दशक में घट कर 27 से 6 प्रतिशत तक कैसे आ गई? इस बारे में यह कहना ही काफी है कि गरीबी के मानदंड अब वे नहीं हैं जो इन्दिरा गांधी के शासन काल के दौरान थे। आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के चलते भारत की सामाजिक –आर्थिक संरचना में जो गुणात्मक परिवर्तन आया है उसके चलते गरीबों का सशक्तीकरण बाजार की शक्तियों की मार्फत ही हुआ है और श्री मोदी ने अपनी गरीब समर्थक योजनाएं चला कर इसे संपुष्ट करने का प्रयास किया है।
जाहिर तौर पर इसका प्रभाव राजनीति पर भी पड़ना लाजिमी था। इसी कारण से 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को तमिलनाडु में 19 प्रतिशत के लगभग मत मिले थे। अब गृहमन्त्री इस मत प्रतिशत को उस बिन्दू तक ले जाना चाहते हैं जहां पहुंच कर भाजपा प्रत्याशी विजयी हो सकें। पिछले दिनों श्री शाह ने तमिलनाडु का दो दिवसीय दौरा किया और अपने दौरे मे मदुरै की विशाल जनसभा को सम्बोधित किया जिसमे उन्होने राज्य की एम के स्टालिन की द्रमुक सरकार को निशाने पर रखा और घोषणा की कि 2026 के विधानसभा चुनावों में राज्य मे भाजपा व अनाद्रमुक की मिली-जुली सरकार आयेगी। भाजपा ने तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक से गठबन्धन करके स्वाभाविक तौर पर मुख्य विपक्षी दल की भूमिका अपना ली है। इस जनसभा में श्री शाह ने श्री स्टालिन को चुनौती दी कि वह केन्द्र की सभी गरीब समर्थक योजनाओं को लागू करें और गरीबों को सशक्त करें। राज्य सरकार अब केवल तमिल भाषा के उन्माद मंे राज्य की जनता को शेष भारत की जनता से अलग नहीं कर सकती है। स्टालिन के शासनकाल मे तमिल भाषा उच्च शिक्षा का माध्यम नहीं बन सकी है। इसके साथ ही तमिलनाडु में ‘हिन्दू मुन्नानी’ संगठन जनसंघ के जमाने से ही सक्रिय है। यह संगठन भाजपा की मदद से मदुरै मे भगवान मुरुगन की उपासना में आगमी 22 जून से एक 11 दिवसीय धार्मिक महा- सम्मेलन का आयोजन कर रहा है मगर स्टालिन सरकार इसकी राह मे रोड़े अटका रही है और मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है।
यह सम्मेलन एक निजी स्थल पर किया जा रहा है जिसमे लाखों लोगों के आने की संभावना है परन्तु तमिलनाडु सरकार यह कह रही है कि भीड़ के इन्तजाम को देखना स्थानीय पुलिस के नियन्त्रण के बाहर हो सकता है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री नैनार नगेन्द्रन का कहना है कि स्टालिन सरकार अकारण ही वक्ताओं और भीड़ पर अंकुश लगाना चाहती है। दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन के प्रति लोगों मे वही श्रद्धा भाव है जो उत्तर भारत मे भगवान राम के प्रति। भगवान मुरुगन के प्रति आस्था दिखाने वालों को रोक कर स्टालिन सरकार आम जनता में अलोकप्रिय हो सकती है। इसका डर राज्य सरकार को है अतः वह कोई बीच का रास्ता ढूंढ रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का यह भी कहना है कि सम्मेलन में आन्ध्र प्रदेश के उप-मुख्यमन्त्री पवन कल्याण को बुलाया जा रहा है और उनकी तमिलनाडु के लोगों के बीच भी अच्छी खासी लोकप्रियता है जिसे देख कर भारी भीड़ होने का अन्दाजा लगाया जा रहा है। मदुरै मुरुगन सम्मेलन अब तमिलनाडु की राजनीति मे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। भाजपा अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का इसे प्रयोग मान रही है जो द्रमुक पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। वैसे स्व अटल बिहारी वाजपेयी के शासन के दौरान भी भाजपा ने तमिलनाडु में कदम रखने की कोशिश की थी और 2001-02 में श्री जनकृष्णमूर्ति को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। जनकृष्णमूर्ति समर्पित कार्यकर्ता थे और जनसंघ के जमाने से पार्टी से जुड़े हुए थे। उनसे पहले साल आन्ध्र प्रदेश के बंगारू लक्ष्मण भाजपा अध्यक्ष थे। मगर भाजपा का तमिलनाडु में प्रवेश करने का यह प्रयास असफल ही रहा था।लेकिन श्री शाह ने सभी राजनीतिक समीकरण इस प्रकार उल्टे-पुल्टे किये हैं कि तमिलनाडु में भाजपा की पदचाप सुनाई देने लगी है। हालांकि केरल राज्य में भाजपा को शहरी इलाकों में अब वोट प्रतिशत लगातार बढ रहा है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि राज्य की राजनीति मे प्रभावशाली मार्क्सवादी पार्टी मूल रूप से हिन्दू पार्टी मानी जाती है जबकि कांग्रेस व अन्य दलों के पास बहुमत मे अल्पसंख्यक मत हैं।
अतः जैसे –जैसे भाजपा इस राज्य मे कदम बढ़ा रही है वैसे –वैसे ही मार्क्सवादी पार्टी का ग्राफ नीचे आ रहा है। मगर इसके पीछे श्री शाह की रणनीति ही है जो दक्षिण भारत मे भाजपा को ऊपर ला रही है। वैसे भी दक्षिण के राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश मे भाजपा अब शक्तिशाली रूप से प्रभावी हो चुकी है।