हंगामों की भेंट चढ़ सकता है संसद का शीतकालीन सत्र
भले ही कांग्रेस नीत विपक्षी गठबंधन ताजा-ताजा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हार गया हो पर अभी उसने हिम्मत नहीं हारी है, संगठित विपक्ष भाजपा नीत सत्ता पक्ष से लड़ने-भिड़ने का नया हौसला दिखा सकता है।
’देखो कैसे इस शहर को उसका सूरज ही निगल गया है
इतनी आदत थी रोशनी की, हां इंसा मसालों सा जल गया है’
भले ही कांग्रेस नीत विपक्षी गठबंधन ताजा-ताजा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हार गया हो पर अभी उसने हिम्मत नहीं हारी है, संगठित विपक्ष भाजपा नीत सत्ता पक्ष से लड़ने-भिड़ने का नया हौसला दिखा सकता है। इसी सोमवार से आहूत होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के इन्हीं इरादों की झलक मिल सकती है, जब वह मिल-जुल कर समवेत स्वरों में ’दम लगा कर हईशा’ का उद्घोष कर सकता है। मौजूदा सत्र के लिए भाजपा नीत सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक समेत 15 विधेयक सूचीबद्ध किए हैं। विपक्षी दलों की रणनीति अडानी व माधबी पुरी बुच मुद्दे पर सरकार को पूरी तरह से घेरने की है। विपक्षी दलों की रणनीति है कि ’वे संसद का सत्र शुरू होते ही सीधे-सीधे पीएम मोदी का इस्तीफा मांगेंगे।’ लोकसभा में कांग्रेस की रणनीतियों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पार्टी शीर्ष ने अपने नेताओं की एक सूची भी तैयार कर ली है, रणनीति तय करने के लिए इन नेताओं की कम से कम तीन बैठकें भी हो चुकी हैं। सदन में बोलने के लिए पार्टी अध्यक्ष खड़गे ने ऐसे नेताओं का चुनाव किया है जो अब तक अडानी मुद्दे पर मुखर रहे हैं। ऐसी बैठकों में शिरकत करने के लिए मनीश तिवारी को चंडीगढ़ से तलब किया गया, जबकि शशि थरूर को केरल से बुलाया गया। आने वाले कुछ दिनों में मनीश तिवारी की बेटी की शादी होनी है, अभी दो दिन पहले उनके आवास पर ही उनकी पुत्री का सगाई समारोह गिने-चुने लोगों की मौजूदगी में संपन्न हुआ है। जाहिर है मनीश बेटी के विवाह की तैयारियों में पूरी तरह मसरूफ हैं, फिर भी उनसे कहा गया है कि इस सत्र में उन्हें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना है। थरूर व तिवारी के अलावा गौरव गोगोई भी इस मुद्दे पर मुखर रहने वाले हैं, सूत्रों की माने तो सबसे बढ़ चढ़ कर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी स्वयं सदन में इस मामले की कमान थामने वाले हैं। सपा की ओर से राम गोपाल यादव कांग्रेस के साथ समन्वय बिठाने का काम कर रहे हैं। अगर पार्टी मुखिया ममता बनर्जी की हरी झंडी मिली तो महुआ मोईत्रा को भी एक बार फिर से अडानी मुद्दे पर ’प्रो-एक्टिव’ रोल में देखा जा सकता है, 20 दिसंबर तक चलने वाला यह सत्र अडानी के नाम पर धुल भी सकता है।
पर वक्फ विधेयक पास कराने को बेकरार है सरकार
एक ओर जहां विपक्ष संसद के शीतकालीन सत्र को बेहद हंगामीखेज बनाने में जुटा है वहीं सरकार के फ्लोर मैनेजर महाराष्ट्र की बंपर जीत से गद्गद् पूरी शिद्दत से इस प्रयास में जुटे हैं कि किसी प्रकार से विपक्षी नेताओं को मना कर सत्र चलाने के लिए राजी किया जाए। मणिपुर के ताजा संकट से भी केंद्र सरकार की परेशानियों पर बल है, विपक्ष इसको लेकर भी हंगामा कर सकता है। सरकार के कर्णधारों ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के निवास पर बैठक कर अपने एजेंडे को नई धार देने का काम किया है। इस सत्र में लाने के लिए जो 15 बिल शॉर्ट लिस्ट किए गए हैं, इनमें से 5 नए विधेयक हैं और 10 ऐसे विधेयक हैं जो अभी तक पास नहीं हो पाए हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण वक्फ विधेयक को माना जा रहा है जो जेपीसी की रिपोर्ट के बाद ’वक्फ एक्ट’ में बदलाव के लिए पेश किया जाएगा। बहरहाल जेपीसी की रिपोर्ट के लिए विपक्ष ने और समय मांगा था पर इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल का कहना है कि रिपोर्ट तैयार है। भाजपा इस विधेयक को लेकर काफी आशान्वित है कि यह बिल सदन में पारित हो जाएगा। सूत्रों की माने तो सरकार के नजरिए से एक और अहम विधेयक ’एक राष्ट्र एक चुनाव’ को फिलहाल ठंडे बस्ते के हवाले किया जा सकता है।
आजम के मुकाबले जावेद को खड़ा कर रहे हैं अखिलेश
यूं तो जावेद अली खान सपा के साइकिल पर सवार होकर ऊपरी सदन में दूसरी बार पहुंचे हैं, पर उन्हें सपा में लाने का क्रेडिट मुलायम सिंह यादव को जाता है। संभल से ताल्लुक रखने वाले जावेद अली छात्र जीवन से वामपंथी रहे हैं, पर वे मित्रसेन यादव के साथ मुलायम के कहने पर सपा में शामिल हो गए। 2014 में मुलायम ने इन्हें संभल से लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया था पर आजम के दबाव में इनका टिकट काट कर बसपा छोड़ कर आए शफीकुर रहमान को सपा का टिकट दे दिया गया और जावेद अली से वायदा किया कि इन्हें राज्यसभा में भेजा जाएगा। पर पहली बार राज्यसभा में आते-आते भी जावेद को 18 महीने लग गए। अब ये राम गोपाल यादव के बेहद करीबियों में शुमार होते हैं सो अखिलेश अब उन्हें आजम के मुकाबले पश्चिमी यूपी में बतौर अपना मुस्लिम फेस तैयार कर रहे हैं। यूपी के इन उप चुनावों में भी अखिलेश ने उन्हें कुंदरकी विधानसभा का इंचार्ज बनाया था, जहां 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। पर कुंदरकी में वोट डालने की शाम को ही जावेद ने अखिलेश को एक रिपोर्ट सौंप दी जिसमें कहा गया था कि कुंदरकी में सपा को हार का मुंह देखना पड़ सकता है, क्योंकि यहां के मुस्लिम व यादव बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत ही बहुत कम रहा। जावेद के आरोप थे कि प्रशासन ने पीएसी की मदद लेकर सपा के मतदाताओं को बूथ तक पहुंचने में ढ़ेरों व्यवधान पैदा किए। जावेद का कहना था कि यही फार्मूला अन्य सीटों पर भी आजमाया गया, बस करहल सीट ऐसी थी जहां यादवों पर राज्य प्रशासन की जोर आजमाइश नहीं चली।
सपा के लिए चुनौती बनते चंद्रशेखर रावण
इस दफे के यूपी उपचुनाव में मीरापुर विधानसभा सीट पर एक खास किस्म की लड़ाई देखने को मिली। जहां सपा प्रत्याशी को रालोद प्रत्याशी के अलावा चंद्रशेखर आजाद रावण के आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार जाहिद हुसैन से कड़ी टक्कर मिलती रही। यह ट्रेंड कई माइनों में चौंकाने वाला था और इस बात का शर्तिया ऐलान भी था कि ’रावण सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सीधी सेंध लगा रहे हैं।’ नगीना से 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने से पहले चंद्रशेखर अखिलेश यादव के सीधे संपर्क में बताए जाते थे। पर अखिलेश ने न तो उन्हें 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया और न ही 24 के लोकसभा चुनाव में ही उन्हें परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर अपना समर्थन ही दिया। इसकी वज़ह यह बताई गई कि अखिलेश व उनके रणनीतिकार प्रोफेसर राम गोपाल यादव यूपी में एक और मायावती का प्रादुर्भाव नहीं चाहते थे। पर यूपी के मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने जिसका केंद्र एक तरह से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को माना जा सकता है, इन्होंने खुल कर चंद्रशेखर के पक्ष में अलख जगाई। नगीना से इस दफे चंद्रशेखर को विजयी बनाने में मुस्लिम वोटरों का सबसे बड़ा रोल रहा। मीरापुर विधानसभा सीट भी बिजनौर व नगीना से लगी सीट है सो यहां पर रावण के प्रत्याशी को 22 हजार से ज्यादा वोट मिलने से भी यही संकेत मिलते हैं कि चंद्रशेखर रावण अखिलेश के मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाने का माद्दा रखते हैं। कंुदरकी में भी रावण का उम्मीदवार तीसरे नंबर पर है।
भाजपा की तारणहार बहिन जी
यूं तो घोषित परंपराओं के मुताबिक बसपा सुप्रीमो मायावती आम तौर पर उप चुनावों में अपने उम्मीदवार नहीं उतारती हैं, पर चूंकि इस दफे के उप चुनावों में कमल का मामला किंचित फंसा हुआ था सो बहिन जी पहले की तरह फिर से भाजपा की तारणहार बन कर सामने आईं। उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनावों की तर्ज पर इतना तो किया ही कि यूपी में इस बार की चुनावी लड़ाई को फिर से त्रिकोणीय बना दिया। पर 2022 के विधानसभा चुनावों में बहिन जी की बसपा को जहां मात्र 1 सीट से संतोष करना पड़ा था, वहीं इन उप चुनावों में कोई बसपा उम्मीदवार कहीं जीतता भी नज़र नहीं आया। और जीतता भी कैसे भाजपा के दबाव में आकर भले ही बहिन जी ने मैदान में अपने उम्मीदवार उतार दिए हों, पर उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए न तो स्वयं मायावती गईं और न ही उनके भतीजे आकाश आनंद ही पहुंचे।
…और अंत में
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के ताजा परिणामों में कांग्रेस नीत महाविकास अघाड़ी को बड़े अंतर से जहां मुंह की खानी पड़ी, वहीं गठबंधन साथियों के घर का झगड़ा अब खुल कर सड़क पर भी आ चुका है। कहते हैं महायुति सरकार की ’लड़की बहिन योजना’ सबसे बड़ी गेमचेंजर साबित हुई है। वहीं मुस्लिम वोटों में बंटवारा भी महाविकास अघाड़ी उम्मीदवार की हार का एक प्रमुख कारण बना। अकेले असदुद्दीन औवेसी ने 2 महाअघाड़ी को खासा डेंट लगाया, औवेसी ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसने महाविकास अघाड़ी उम्मीदवारों की जीत की संभावनाओं को धूमिल कर दिया।
सौ से ज्यादा छोटी पार्टियों ने भी थोकभाव में वोटों के बंटवारे का काम किया, जिससे ज्यादातर सीटों पर इससे महायुति के प्रत्याशियों को इसका फायदा मिला। भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा संघ के बूथ मैनेजमेंट से मिला।