गर्मी की दस्तक के साथ जलसंकट से जूझने लगे देशवासी
जल संकट से जूझ रहा है देश, बढ़ती गर्मी ने बढ़ाई मुश्किलें
आज गर्मी से एक तरफ धरती का तापमान बढ़ रहा है तो दूसरी ओर जल स्तर भी घटता जा रहा है। अभी गर्मी शुरुआती दौर में है और देश में जल संकट शुरू हो गया है। जब अभी यह स्थिति है तो मई-जून के माह में क्या हाल होगा। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले कुछ इलाकों में पानी की कमी दिखती थी लेकिन अब इसका दायरा बढ़ता जा रहा है। शहर हो या गांव या सुदूर इलाके सबकी स्थिति एक समान होती जा रही है। ग्रामीण इलाके पानी के मामले में कुछ बेहतर माने जाते थे लेकिन वहां भी शहर जैसी ही स्थिति हो गयी। कई गांवों में कुएं सूखते जा रहे हैं तो कई जगह तालाब पानी के बिना मैदान बनते जा रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र की स्थिति और दयनीय है। शहरी क्षेत्र में गर्मी बढ़ते ही लोगों की निर्भरता नगर निगम या प्राईवेट टैंकर पर बढ़ती जा रही है तो गांवों में लोग तालाब नदी-नालों की तरफ जाने लगे हैं लेकिन वहां भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है।
देश में जल का संकट बहुत गंभीर है। नीति आयोग ने 2019 में समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट जारी की जिसमें कुछ चौंकाने वाली बातें कहीं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के 60 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। दुनिया में जिन देशों में पानी की जांच हुई उस जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 में से 120वें नंबर पर रहा। यानी यहां साफ पानी मिलना मुश्किल है। दुनिया की कुल आबादी में भारतीय आबादी का हिस्सा 18 प्रतिशत है जबकि दुनिया के कुल मीठे पानी में भारत का हिस्सा सिर्फ 4 फ़ीसदी है। इससे ख़ुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में पीने के पानी की कितनी कमी है। ये संकट गर्मियों में और बढ़ जाता है। उत्तर भारत में ख़ासकर जहां जलाशयों में पानी की कमी है और जब तक मॉनसून की बारिश फिर से इन्हें नहीं भर देती तब तक संकट और गहराता जाएगा।
उत्तर भारत का राज्य राजस्थान जल संकट की सबसे ज्यादा मार झेलता है। राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा रेगिस्तान है इसलिए ये पानी की कमी वाला राज्य है। ये समस्या और गंभीर होती चली जा रही है। पानी का संकट यहां दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। राजस्थान के कुल 302 ब्लॉक में से 216 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आते हैं। यानी यहां की जमीन से पानी हद से ज्यादा निकाला जा चुका है। अभी जब ये हाल है तो गर्मी बढ़ने से हालात बद से बदतर होते चले जाएंगे। जमीन के नीचे का पानी क्यों और किस रफ्तार से कम हो रहा है, इसका अंदाजा उन आंकड़ों को देख कर लग जाता है जिनमें पता चलता है कि हर साल कितना भू-जल निकाला जाता है। बारिश के ज़रिए वो कितना वापस मिट्टी में जाता है…यानी रिचार्ज होता है। 2023 में 16.34 बिलियन क्यूसेक मीटर जल का दोहन हुआ और केवल 12.45 बिलियन क्यूसेक मीटर पानी रिचार्ज हो पाया। इससे ये तो साफ़ है कि जमीन के नीचे पानी सूखता चला जा रहा है और पहुंच से दूर होता जा रहा है। लोगों की प्यास बढ़ती जा रही है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में भी पानी का संकट अपना भयंकर रूप दिखा रहा है। दिल्ली में गर्मियां जल संकट लेकर आती हैं। हर बार गर्मियों में दिल्ली ’प्यासी’ रह जाती है। दिलवालों की दिल्ली बीते कुछ दिनों से पानी के लिए तरस रही है। पहले ही गर्मी की मार झेल रहे दिल्ली वासियों पर अब जल संकट भी मुसीबत बनकर टूट पड़ता है। कई इलाकों में लोग सुबह से ही डिब्बे और पाइप लेकर पानी के टैंकरों का इंतजार करते दिखते हैं। जैसे ही कोई टैंकर उनके पास पहुंचता है तो उससे पानी भरने के लिए होड़ शुरू हो जाती है। इस बीच दिल्ली के इस जल संकट पर राजनीति भी खूब गर्मा रही है।
कमोबेश ऐसे ही हालात देश के अन्य राज्यों के भी हैं। उत्तर भारत के ही शहरों का नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी पानी की बेहद किल्लत देखी जा रही है। पिछले साल भारतीय आईटी का गढ़ माने जाने वाले बेंगलुरु शहर बूंद-बूंद पानी के लिए तरस गया था। ओडिशा के नबरंगपुर जिले के पापड़ाहांडी ब्लॉक में स्थित आदिवासी गांव बदाबरली इस वक्त भयंकर जल संकट से जूझ रहा है। यहां पानी की ऐसी हालत हो चुकी है कि न सिर्फ लोगों का जीना मुश्किल हो गया है, बल्कि युवाओं की शादी भी टल रही है और कई महिलाएं ससुराल छोड़कर वापस अपने मायके लौट रही हैं। गांव के करीब 200 से ज्यादा परिवार रोज पीने के पानी के लिए परेशान हैं।
हर साल गर्मी आते ही देश के कई हिस्सों में लोग पानी को तरस जाते हैं। पीने के पानी की ख़ासतौर से कमी हो जाती है। बड़े शहरों में जब नल सूख जाते हैं तो सरकारी या प्राइवेट टैंकरों से लोगों की प्यास बुझती है। दूसरी तरफ लोग पीने का पानी खुलेआम बर्बाद भी करते रहते हैं। जो पानी किसी के पीने के काम आ सकता है उससे लोग अपनी गाड़ियां धोते हैं और लॉन पर छिड़कते हैं। वैसे भी पानी की हर जगह कमी है। जिन नदियों से कभी हमें पानी मिलता था उन्हें हमने इतना प्रदूषित कर दिया है कि उसे मुंह लगाना भी अपनी जान जोखिम में डालना है। हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि जिस बारे में बहुत पहले सख्त फैसले हो जाने चाहिए थे वो अभी तक अटके पड़े हैं।
जानकार मानते हैं कि अगर हम चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं…क्योंकि बूंद-बूंद से ही सागर बनता है। तालाबों, झरनों, नदियों में बहता निर्मल उज्ज्वल जल जो कभी हर किसी को आसानी से और मुफ्त में मिला करता था। आज नौबत ये आ गई है कि उसी के लिए लोग और राज्य एक दूसरे से लड़ने पर उतारू हैं और उसकी बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। पानी जिसका कभी मोल नहीं लगा और जिसकी शायद हमने और आपने उतनी क़द्र नहीं की जितनी की जानी चाहिए थी, वो आहिस्ता आहिस्ता लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार पानी को लेकर दिक्कत भारत में तब तक रहेगी जब तक इस पर कोई व्यापक नीति नहीं बनाई जाती। शहरों में पानी की बर्बादी अधिक होती है और ये शहरों में पानी की कमी का एक बड़ा कारण है। अगर हालात बदलने हैं, संभलना है तो अभी तुरंत कुछ न कुछ करना होगा। अपने स्तर पर कोशिश कर पानी बचाना होगा। अपनी सरकारों पर दबाव डालकर ऐसे कानून लाएं, ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे हमें और आने वाली पीढ़ियों को प्यासा न रहना पड़े।
पिछले दस सालों में मोदी सरकार ने नल जल योजना, जल जीवन मिशन, कुएं सहित अन्य योजनाएं चलाकर गांवों में शत-प्रतिशत पानी पहुंचाने में लगी है। कहने को तो पानी बचाने और जन- जन तक पानी पहुंचाने की कोशिशें सरकारें कर रही हैं…लेकिन क्या जितनी कोशिशें की जा रही हैं वो काफी हैं। या हमें अपनी नीतियों में ही अमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है? पर्यावरणविद मानते हैं…कि हमें जल को नीतियों में प्राथमिकता देनी होगी तभी कुछ हो सकता है। देश जब गंभीर जल संकट से गुजर रहा है तो जाहिर है इससे निपटने के लिए भी कुछ बहुत बड़े उपायों की जरूरत है।