W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

शी जिनपिंग का भारत आगमन

चीन के राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग आगामी 12 अक्टूबर को भारत की दो दिवसीय अनौपचारिक यात्रा पर आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि चीन में भारत के तेवरों को समझने की चाहत है। यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है

04:16 AM Oct 10, 2019 IST | Ashwini Chopra

चीन के राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग आगामी 12 अक्टूबर को भारत की दो दिवसीय अनौपचारिक यात्रा पर आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि चीन में भारत के तेवरों को समझने की चाहत है। यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है

शी जिनपिंग का भारत आगमन
Advertisement
भारत-चीन के सम्बन्धों को लेकर जिस प्रकार के संशय का वातावरण जम्मू-कश्मीर को लेकर बना है उससे दोनों देशों के आपसी दीर्घकालिक हितों पर विपरीत असर पड़ने की संभावना को टाला नहीं जा सकता था किन्तु प्रसन्नता की बात है कि चीन के राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग आगामी 12 अक्टूबर को भारत की दो दिवसीय अनौपचारिक यात्रा पर आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि चीन में भारत के तेवरों को समझने की चाहत है। यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है कि भारत के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की बुनियाद पर ही चीन समूचे एशिया में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है परन्तु यह कार्य भी वह भारत के सहयोग के बिना नहीं कर सकता।
Advertisement
दूसरी तरफ उसने पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों को जिस गहराई तक बढ़ाया है उससे उसकी कूटनीतिक चुनौती लगातार बढ़ रही है क्योंकि पाकिस्तान पूरी दुनिया में ऐसे ‘केक्टस’ के पौधे की तरह अपनी पहचान बना चुका है जिसमें सिर्फ कांटे ही कांटे हैं। उसकी चीन-पाक कारीडोर परियोजना (सी पैक) पाकिस्तान की खराब अर्थव्यवस्था में बेशक सहारा देने का भरोसा पाकिस्तानी हुक्मरानों को दिला रही हो किन्तु इसका अधिकतम लाभांश चीन के हिस्से में ही आने वाला है जिसकी वजह से चीन पाकिस्तान के कन्धे से अपना हाथ हटाना नहीं चाहता है और भारत के सन्दर्भ में उसकी रंजिश से भरी शातिराना हरकतों तक को शह देने का काम करता लगता है।
Advertisement
जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर चीन ने जिस तरह राष्ट्रसंघ समेत कुछ अन्य मंचों पर रुख अपनाया है उससे स्पष्ट है कि वह इस मामले में अपनी पूर्व घोषित नीति से हटना चाहता है क्योंकि इससे पहले तक चीन लगातार यही कहता रहा था कि ‘यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच का आपसी मामला है जिसे बातचीत द्वारा निपटाया जाना चाहिए’ परन्तु राष्ट्रसंघ में चीन के विदेश मन्त्री ने कश्मीर विवाद पर राष्ट्रसंघ के प्रस्तावों का हवाला देकर अपने रुख में परिवर्तन किया और संकेत दिया कि वह पाकिस्तान की मदद करना चाहता है
किन्तु बदलाव तब और भी ज्यादा स्पष्ट हुआ जब पाकिस्तान स्थित चीनी राजदूत श्री याओ लिंग ने यह वक्तव्य दिया कि ‘चीन जम्मू-कश्मीर समस्या के हल के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ रहेगा और चीन भी कश्मीरियों को उनके मूल अधिकार व न्याय दिलाने के लिए काम कर रहा है।’ चीन के किसी राजनयिक का एेसा बयान भारत के आन्तरिक मामलों में सीधे किसी दखलन्दाजी से कम नहीं था और ठीक वैसा ही था जैसा कि पाकिस्तान का है।
अतः भारत ने इसे बहुत गंभीरता के साथ लिया और कूटनीतिक माध्यमों से इसका कड़ा प्रतिरोध बीजिंग में दर्ज कराया जिसके बाद चीनी विदेश मन्त्रालय ने वक्तव्य जारी करके अपने रुख में संशोधन का संकेत देते हुए कहा कि चीन भारत और पाकिस्तान से वार्तालाप प्रक्रिया के माध्यम से अपने सभी विवाद समाप्त करने की अपेक्षा करता है जिनमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल है। इससे जाहिर होता है कि चीन के सामने भारत की नाराजगी मोल लेने का विकल्प भी नहीं है।
यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि जब पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान के तीन दिवसीय बीजिंग  दौरे का आज (बुधवार को) अन्तिम दिन है तो चीन व भारत दोनों की ओर से ही आधिकारिक घोषणा की गई है कि श्री शी जिनपिंग दो दिन के अनौपचारिक दौरे पर भारत आ रहे हैं। श्री जिनपिंग के साथ प्रधानमन्त्री केरल के मल्लापुरम् में दो दिन रहेंगे और दोनों नेताओं के बीच आपसी सम्बन्धों पर बातचीत होगी। स्पष्ट है कि इस बातचीत का कोई पूर्व निर्धारित एजेंडा उसी प्रकार नहीं होगा जिस प्रकार श्री मोदी की विगत वर्ष हुई अनौपचारिक दो दिवसीय वुहान (चीन) यात्रा के दौरान नहीं था।
इससे भी संकेत मिलता है कि चीन बेशक पाकिस्तान को अपना ‘हर समय का रणनीतिक दोस्त’ कहे और घोषणा करे कि पाकिस्तान के साथ उसकी व्यावहारिक सहयोग बढ़ाते हुए  आपसी विश्वास पैदा करने की नीति है किन्तु भारत के साथ उसे अपने सम्बन्धों की समीक्षा पाकिस्तान से निरपेक्ष रहते हुए ही करनी होगी। चीन को इसका प्रमाण भारत को देते हुए स्पष्ट करना होगा कि वह भारत के आन्तरिक मामलों से पूरी तरह दूर रहेगा और नई दिल्ली व बीजिंग के बीच का रास्ता ‘इस्लामाबाद’ से होकर किसी भी सूरत में नहीं गुजरेगा।
पाकिस्तान के साथ किस तरह निपटना है यह पूरी तरह स्वतन्त्र भारत की सार्वभौमिक सरकार का विशेषाधिकार है बल्कि चीन को इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ से अपनी सी पैक परियोजना को गुजारने के लिए वह पाकिस्तानी सरकार से मुआवजा ले क्योंकि वैधानिक रूप से यह पूरा क्षेत्र भारतीय संघ का अभिन्न हिस्सा है। इस हिस्से में कोई भी निर्माण कार्य कानूनी तौर पर भारत सरकार की मर्जी के बिना नहीं कराया जा सकता।
इस सन्दर्भ में केन्द्र में मनमोहन सरकार के रहते चीन द्वारा एशियाई विकास बैंक की मदद से किये गये कार्यों के खिलाफ विरोध भी दर्ज कराया गया था परन्तु दूसरी तरफ चीन के भारत के प्रति दोस्ताना कदमों का एक पहलू यह भी है कि हमारे देश में चीन की कम से कम एक हजार कम्पनियां कार्यरत हैं जिन्होंने दो लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया हुआ है और इनमें आठ अरब डालर के करीब का निवेश है। हालांकि चीन और भारत के बीच व्यापार सन्तुलन चीन के पक्ष में ही ज्यादा है, इसके बावजूद चीन का भारत से आयात 15 प्रतिशत बढ़ा है। यह सब पिछले पांच वर्षों में ही हुआ है।
अतः मोदी सरकार की चीन नीति को कारगर कहा जा सकता है। ये आकंड़े भारत में चीन के राजदूत श्री सुन वी डोंग ने ही ‘विजयादशमी’ पर भारत के लोगों को बधाई देते हुए एक ट्वीट में जारी किये हैं। आर्थिक क्षेत्र में सहयोग के रास्ते चीन ने भारत में अपनी पहचान को बदलने का गंभीर प्रयास किया है जिसकी वजह से आज हर वर्ष कम से कम एक लाख लोग चीन व भारत में आते-जाते हैं।
यही तथ्य उजागर करता है कि आज का भारत 1962 का भारत नहीं है और दोनों देशों के लिए अपने-अपने विकास का मार्ग आपसी सहयोग में खुला हुआ है। यह सहयोग सांस्कृतिक द्वारों को भी बहुत स्वाभाविक तरीके से खटखटाता है क्योंकि भारत व चीन दोनों ही दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं वाले देश हैं जो हमें ऐतिहासिक‘सिल्क रूट’ की याद दिलाते हुए हिन्दी की महान कथाकार महादेवी वर्मा की कहानी ‘सिस्तर का वास्ते’ की याद ताजा करा देते हैं। अतः चीन को कम्युनिस्ट नजरिये से नहीं बल्कि जमीनी नजरिये से अपने सम्बन्धों को भारत से मधुर बनाना होगा।
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×