असली श्राद्ध...
आजकल श्राद्ध चल रहे हैं।
01:25 AM Sep 21, 2022 IST | Kiran Chopra
आजकल श्राद्ध चल रहे हैं। अपने पितरों या अपने प्रियजनों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए यह हर साल किये जाते हैं अर्थात प्रियजनों को याद करते हुए उनकी याद में तर्पण करतेे हुए उन्हें श्रद्घाजंलि दी जाती है। परन्तु मेरा मानना है कि असली श्राद्घ वो है जो उनकी याद में कोई अच्छा काम किया जाए। किसी जरूरतमंद की सहायता की जाए, या वो काम किया जाए जिससे उन्हें दुआएं मिलें और उनका आशीर्वाद उनके बच्चों को मिले। इतने सालों के अनुभव से मैंने कई माता-पिता को बच्चों के प्यार और सम्मान के लिए तड़पते देखा है और उन्हीं बच्चों को उनके जाने के बाद बड़ी-बड़ी क्रियाएं और श्राद्घ करते देख। क्या है ये सब? क्यों नहीं सब समझते? अगर जीवित माता-पिता, दादा-दादी को अच्छी तरह पूछा जाये, सेवा की जाये तो उससे बड़ी बात नहीं। उनके जाने के बाद क्या फायदा। मैंने अपनी पुस्तकों में भी आंखों देखा हाल लिखा कि कैसे एक मां तड़पती हुई चली गई परन्तु बाद में उसके बहू-बेटों ने उसकी शानदार क्रिया, शानदार कैटरिंग और सजावट की। यही नहीं सबसे बड़े दु:ख की बात है कि जब कोई बीमार होता है तब कोई उसका हाल पूछने जाए। परन्तु उनकी मृत्यु यानि क्रिया पर सब जाते हैं। जब वो देखने वाला ही नहीं रहता। यदि वो व्यक्ति बीमार हो तो सभी उसके पास जाकर खुशी की या कोर्ई सकारात्मक बातें करें तो जाने वाले के दिल से भी दुआएं निकलेंगी और एक यह अहसास होगा कि सब मुझे प्यार करते हैं। सब मुझे चाहते हैं। मेरा इस समाज में महत्वपूर्ण स्थान है तो उनको कितना आत्मविश्वास होगा। जाते-जाते उनके मन को शांति मिलेगी। आज मैं देख रही कि जबसे श्राद्घ शुरू हुए हैं बहुत से बेटे-बहुएं अपने सास-ससुर और कर्ई पति और पत्नियां अपने बिछड़े साथियों की याद में सहायता राशि भेज रहे हैं। यह भी अच्छा कार्य है। जब उनकी भेजी राशि किसी बुजुर्ग का पेट भरेगी या उसको उसकी जरूरत का सामान मिलेगा। पिछले लेख में मैंने बदलते परिवेश में बुजुर्गों की अवस्था के बारे में लिखा था। वाकई परिवार अकेले हो गए हैं। संयुक्त परिवार रहे नहीं! बुजुर्गों की हालत कई घरों में बदतर है। परन्तु कई घरों में बुजुर्ग आज भी भगवान की तरह पूजे जाते हैं।
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कहने का भाव यही है कि जीते जी सभी की सेवा करो, प्यार और सम्मान दो उनके जाने के बाद उनकी याद में अच्छे-अच्छे काम करो। यही असली श्राद्ध है।
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