editorial
दलित युवक का दारुण चीत्कार !
<p>इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि स्वतन्त्र भारत के जिस संविधान ने लोगों के बीच बराबरी पैदा करने के लिए जिस जाति विहीन समाज का सपना देखा उसे कालान्तर में स्वयं संविधान की शपथ लेकर लोकतान्त्रिक प्रशासन चलाने वाले राजनीतिज्ञों ने ही तोड़ डाला</p>01:31 AM Sep 30, 2022 IST